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पुराणों के अनुसार सावन महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान दिया। शिव के द्वारा इस तरह से वरदान देने से देवी पार्वती के मन में हरियाली छाई गई और वह आनंद से झूम उठीं। तब से ही तृतीया तिथि को हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है। दूसरी ओर सावन में सारी सृष्टि हरे रंग का चादर ओढे रहती है इसलिए भी सावन की तृतीया को हरियाली और कज्जली तीज के नाम से पुकारते हैं।
इस वर्ष यह तीज 26 जुलाई बुधवार को है। इस दिन तृतीया तिथि सुबह 9 बजकर 57 मिनट से रात 8 बजकर 8 मिनट तक है। इसलिए तीज के विधिविधान व पूजन भी इसी समय किए जाएंगे। भविष्यपुराण के अनुसार तृतीय के व्रत और पूजन से सुहागन स्त्रियों का सौभाग्य बढ़ता है और कुंवारी कन्याओं के विवाह का योग प्रबल होता है जिससे कुंवारी कन्याओं को मनोनुकूल वर प्राप्त होता है।
कुछ लोगों के अनुसार ऐसी भी कथा है कि भगवान शिव ने देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर समस्त नारी जाति को यह वरदान दिया है कि जो भी कुंवारी कन्याएं और सुहागन स्त्रियां तृतीय तिथि को देवी पार्वती के साथ शिव की पूजा करेंगी उनका दाम्पत्य जीवन खुशहाल होगा।
सावन की इस हरियाली तीज के मौके पर नई नवेली दुल्हन के मायके से नए वस्त्र, सुहाग सामग्री, मेंहदी और मिठाई आने की परंपरा रही है। माना जाता है कि यह मायके की ओर से दुल्हनों के लिए सुहाग का आशीर्वाद होता है। पूर्वजन्म में जब देवी पार्वती का सती रूप में अवतार हुआ था तब शिव से विवाह कर लेने के कारण माता-पिता ने इन्हें त्याग दिया था। पार्वती रूप में जब देवी का जन्म हुआ तो माता-पिता ने अपनी भूल सुधारने के लिए देवी को सुहाग सामग्री भेजा था। इस कारण से हरियाली तीज में इस तरह की परंपरा चली आ रही है।
हर व्रत की तरह हरियाली तीज के भी कुछ नियम हैं। इस व्रत में मायके से जो सुहाग सामग्री आती है उससे सुहागन ऋंगार करती हैं इसके बाद बालूका से बने शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसका कारण यह है कि देवी पार्वती ने वन में बालूका से ही शिवलिंग बनाकर उनकी तपस्या की थी। इस व्रत में तीन चीजों का त्याग जरूरी माना गया है- पति से छल-कपट, असत्य वचन का त्याग और तीसरा दूसरों की निंदा।
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