Friday, July 28, 2017

मैदान छोड़ कर भागा पहलवान

कुछ दिन पहले हुए सालाना दंगल में एक बड़ा ही अजीब नज़ारा देखने को मिला. जब एक हट्टा कट्टा पहलवान अपने से छोटे कद के पहलवान से चल रहा मुक़ाबला छोड़ के भाग खड़ा हुआ.

इस कुश्ती में छोटे कद का पहलवान सुमित जाट जो कि राजस्थान के टीला लोनी का रहने वाला है और उत्तर प्रदेश के सिकंदराबाद शहर के रहने वाले  लम्बू पहलवान के नाम से मशहूर अब्दुल खान में हुई कुश्ती के दौरान देखने को मिली इस सदी की जबरदस्त कुश्तियों में से एक जिसमें सुमित जाट ने अपने प्रतिद्वन्द्वी अब्दुल खान को 20 सेकंड में ही दस पटकनी दे डाली और इसके बाद पहलवान अब्दुल खान घबरा के कुश्ती बीच में छोड़कर भाग गया.😂😆

आप सब भी मजा लीजिये इस शानदार कुश्ती का..

Thursday, July 27, 2017

उज्जैन स्थित भव्य श्री हरसिद्धि मंदिर - यहाँ पर हर व्यक्ति की पूरी होती है मनोकामना

उज्जैन स्थित भव्य श्री हरसिद्धि मंदिर माता सती के 51 शक्तिपीठों में 13वा शक्तिपीठ


सनातन धर्म में देवी के शक्तिपीठों का महत्व अपरंपार है। खासकर, नवरात्र में यहां भक्तों की भीड़ मां के दर्शन को उमड़ पड़ता है। मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक है हरसिद्धि माता शक्तिपीठ। यह शक्तिपीठ मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में है। भूत-भावना महाकालेश्वर की क्रीड़ा-स्थली 'अवंतिका' (उज्जैन) पावन शिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है। यहीं पार्वती हरसिद्धि देवी का मंदिर शक्तिपीठ, रुद्रसागर या रुद्र सरोवर नाम से तालाब के निकट है।


माँ हरसिद्धि मंदिर की दीपमाला के दिव्य दर्शन

उज्जैन स्थित भव्य हरसिद्धि मंदिर भारत के प्राचीन स्थानों में से एक है, जो कि माता सती के 51 शक्तिपीठों में 13वां है। हरसिद्धि मंदिर पूर्व में महाकाल एवं पश्चिम में रामघाट के बीच में स्थित है। तंत्र साधकों के लिए यह स्थान विशेष महत्व रखता है, जो कि उज्जैन के आध्यात्मिक और पौराणिक इतिहास की कथाओं में वर्णित भी है।
महाकाल के मंदिर से कुछ दूरी पर है मंदिर

महाकाल के मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर भैरव जी की मूर्तियां हैं। गर्भगृह में तीन मूर्तियां हैं। सबसे ऊपर अन्नपूर्णा, मध्य में हरसिद्धि तथा नीचे माता कालका विराजमान हैं। इस मंदिर का पुनर्निर्माण मराठों के शासनकाल में हुआ था। यहां दो खंभे हैं जिस पर दीप प्रज्जवलित किए जाते हैं।

देवी के भक्त सच्चिदानंद बताते हैं कि उज्जैन में हरसिद्धि देवी की आराधना करने से शिव और शक्ति दोनों की पूजा हो जाती है। ऐसा इसलिए कि यह ऐसा स्थान है, जहां महाकाल और मां हरसिद्धि के दरबार हैं।

कहते हैं कि प्राचीन मंदिर रुद्र सरोवर के तट पर स्थित था तथा सरोवर सदैव कमलपुष्पों से परिपूर्ण रहता था। इसके पश्चिमी तट पर 'देवी हरसिद्धि' का तथा पूर्वी तट पर 'महाकालेश्वर' का मंदिर था। 18वीं शताब्दी में इन मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ। वर्तमान हरसिद्धि मंदिर चहार दीवारी से घिरा है।
देवी प्रतिमा

मंदिर के मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान पर 'श्रीयंत्र' है। इस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, अन्य प्रतिमाओं पर नहीं और उसके पीछे भगवती अन्नपूर्णा की प्रतिमा है। गर्भगृह में हरसिद्धि देवी की प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत 1447 अंकित है तथा पास ही में सप्तसागर सरोवर है।

दीप स्तंभ

मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते ही सामने मां हरसिद्धि के वाहन सिंह की विशाल प्रतिमा है। द्वार के दाईं ओर दो बड़े-बड़े नगाड़े रखे हैं, जो प्रातः सायं आरती के समय बजाए जाते हैं। मंदिर के सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं। इनमें से एक का नाम 'शिव' है, जिसमें 501 दीपमालाएँ हैं, दूसरे स्तंभ का नाम पार्वती है जिसमें 500 दीपमालाएँ हैं तथा दोनों दीप स्तंभों पर दीपक जलाए जाते हैं। कुल मिलाकर इन 1001 दीपकों को जलाने में एक समय में लगभग 45 लीटर तेल लग जाता है और सब मिलाकर इस काम पर एक समय का खर्च लगभग 7000 रुपये का है, जिसमें कर्मचारियों की मजदूरी भी शामिल रहती है। यह सब कुछ दानी सज्जनों द्वारा प्रायोजित होता है। जिसके लिए यहाँ पर पहले से ही मंदिर प्रबंधक के पास इसकी बुकिंग करवानी पड़ती है।



उज्जयिन्यां कूर्परं व मांगल्य कपिलाम्बरः।


भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार माता सती के पिता दक्षराज ने विराट यज्ञ का भव्य आयोजन किया था जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवता व गणमान्य लोगों को आमंत्रित किया । परन्तु उन्होंने माता सती व भगवान शिवजी को नहीं बुलाया । फिर भी माता सती उस यज्ञ उत्सव में उपस्थित हुईं । वहां माता सती ने देखा कि दक्षराज उनके पति देवाधिदेव महादेव का अपमान कर रहे थे । यह देख वे क्रोधित हो अग्निकुंड में कूद पड़ीं । यह जानकर शिव शंभू अत्यंत क्रोधित हो उठे और उन्होंने माता सती का शव लेकर सम्पूर्ण विश्व का भ्रमण शुरू कर दिया । शिवजी की ऐसी दशा देखकर सम्पूर्ण विश्व में हाहाकार मच गया । देवी-देवता व्याकुल होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और संकट के निवारण हेतु प्रार्थना करने लगे । तब शिवजी का सती के शव से मोहभंग करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया था । चक्र से माँ सती के शव के कई टुकड़े हो गए । उनमें से १३वा टुकड़ा माँ सती की कोहनी के रूप में उज्जैन के इस स्थान पर गिरा । तब से माँ यहां हरसिद्धि मंदिर के रूप में स्थापित हुईं ।

इतिहास के पन्नों से यह ज्ञात होता है कि माँ हरसिद्धेश्वरी सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी थी जिन्हें प्राचीन काल में ‘मांगलचाण्डिकी’के नाम से जाना जाता था । राजा विक्रमादित्य इन्हीं देवी की आराधना करते थे एवं उन्होंने ग्यारह बार अपने शीश को काटकर माँ के चरणों में समर्पित कर दिया पर आश्चर्यवाहिनी माँ पुनः उन्हें जीवित व स्वस्थ कर देती थी । यही राजा विक्रमादित्य उज्जैन के सम्राट थे जो अपनी बुद्धि, पराक्रम और उदारता के लिए जाने जाते थे । इन्हीं राजा विक्रमादित्य के नाम से विक्रम संवत सन की शुरुआत हुई ।

श्री हरसिद्धि मंदिर पूर्व में महाकाल एवं पश्चिम में रामघाट के बीच में स्थित है । बारह मास भक्तों की भीड़ से भरा महाकाल वन उज्जैन का हरसिद्धि शक्तिपीठ ऊर्जा का बहुत बड़ा स्त्रोत माना जाता है । तंत्र साधकों के लिए यह स्थान विशेष महत्व रखता है जो कि उज्जैन के आध्यात्मिक और पौराणिक इतिहास की कथाओं में वर्णित भी है । नवरात्री का त्यौहार यहां खूब धूम-धाम और आस्था के साथ मनाया जाता है । सैकड़ों दीपक एकसाथ नवरात्री के नौ दिन जलाये जाते हैं जिससे अद्भुत और दिव्य दृश्य का निर्माण होता है । हरसिद्धेश्वर उन सभी भक्तों और श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करते हैं जो सच्ची आस्था के साथ इस मंदिर में आते हैं और श्री हरसिद्धेश्वर को अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं ।

श्री हरसिद्धि मंदिर के गर्भगृह के सामने सभाग्रह में श्री यन्त्र निर्मित है । कहा जाता है कि यह सिद्ध श्री यन्त्र है और इस महान यन्त्र के दर्शन मात्र से ही पुण्य का लाभ होता है । शुभफल प्रदायिनी इस मंदिर के प्रांगण में शिवजी का कर्कोटकेश्वर महादेव मंदिर भी है जो कि चौरासी महादेव में से एक है जहां कालसर्प दोष का निवारण होता है ऐसा लोगों का विश्वास है । मंदिर प्रांगण के बीचोंबीच दो अखंड ज्योति प्रज्वलित रहती है जिनका दर्शन भक्तों के लिए शांतिदायक रहता है । प्रांगण के चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार है एवं मुख्य प्रवेश द्वार के भीतर हरसिद्धि सभाग्रह के सामने दो दीपमालाएँ बनी हुई है जिनके आकाश की और मुख किये हुए काले स्तम्भ प्रांगण के भीतर रहस्यमयी वैभव का वातावरण स्थापित करते हैं । यह दीपमालिकाएं मराठाकालीन हैं । ज्योतिषियों के अनुसार इसका शक्तिपीठ नामकरण किया गया है । ये नामकरण इस प्रकार है- स्थान का नाम १३ उज्जैन, शक्ति का नाम मांगलचाण्डिकी और भैरव का नाम कपिलाम्बर है । इस प्राचीन मंदिर के केंद्र में हल्दी और सिन्दूर कि परत चढ़ा हुआ पवित्र पत्थर है जो कि लोगों कि आस्था का केंद्र है ।

हरसिद्धि मंदिर महाकाल के पास हरसिद्धि मार्ग पर स्थित है । यहां आने के लिए सिटी बस उपलब्ध है और लगभग सभी श्रद्धालु जो महाकाल दर्शन को आते हैं वे सभी यहां आकर अपनी मनोकामनाओं कि पूर्ति हेतु दर्शन लाभ लेते हैं एवं अपने तन तथा मन को शुद्ध करते हैं ।

विक्रमादित्य ने मां हरसिद्धेश्वरी देवी को 11 बार अपना सिर काट कर चढ़ाया था

मां हरसिद्धेश्वरी सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी थीं, जिन्हें प्राचीन काल में ‘मांगल-चाण्डिकी’ के नाम से जाना जाता था। राजा विक्रमादित्य इन्हीं देवी की आराधना करते थे। यहां राजा विक्रमादित्य अमावस की रात को विशेष अनुष्ठान करते थे और देवी को प्रसन्न करने के लिए अपना सिर चढ़ाते थे, पर हर बार उनका सिर जुड़ जाता था। उन्होंने 11 बार अपने शीश को काटकर मां के चरणों में समर्पित कर दिया था, लेकिन हरबार मां उन्हें जीवित कर देती थीं। बताते हैं कि यह वह स्थान है, जहां आने वाले हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है।


संध्या आरती का विशेष महत्व

कहते हैं कि माता हरसिद्धि को राजा विक्रमादित्य स्वयं गुजरात से लाये थे। इसलिए माता हरसिद्धि सुबह गुजरात के हरसद गांव स्थित हरसिद्धि मंदिर जाती हैं। रात्रि विश्राम के लिए शाम को उज्जैन स्थित मंदिर आती हैं, इसलिए यहां संध्या आरती का महत्व है।

किंवदंती है कि माता हरसिद्धि सुबह गुजरात के हरसद गाँव स्थित हरसिद्धि मंदिर जाती हैं तथा रात्रि विश्राम के लिए शाम को उज्जैन स्थित मंदिर आती हैं, इसलिए यहां की संध्या आरती का विशेष महत्व है। माता हरसिद्धि की साधना से समस्त प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इसलिए नवरात्रि में यहां साधक साधना करने आते हैं।

मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुँआ है तथा मंदिर के शीर्ष पर एक सुंदर कलात्मक स्तंभ है। इस देवी को स्थानीय लोगों द्वारा बहुत शक्तिशाली माना जाता है।

कहते हैं कि प्राचीन मंदिर रुद्र सरोवर के तट पर स्थित था तथा सरोवर सदैव कमलपुष्पों से परिपूर्ण रहता था। इसके पश्चिमी तट पर 'देवी हरसिद्धि' का तथा पूर्वी तट पर 'महाकालेश्वर' का मंदिर था। 18वीं शताब्दी में इन मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ। वर्तमान हरसिद्धि मंदिर चहार दीवारी से घिरा है।

प्रसंगवश हरसिद्धि देवी का एक मंदिर द्वारका (सौराष्ट्र) में भी है। दोनों स्थानों (उज्जयिनी तथा द्वारका) पर देवी की मूर्तियाँ एक जैसी हैं। इंदौर से 80 किलोमीटर दूर पुणे मार्ग पर स्थित उज्जैन प्राचीन काल से ही तीर्थस्थल रहा है।

Tuesday, July 25, 2017

हरियाली तीज


 ती की कुछ खास बातें



पुराणों के अनुसार सावन महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान दिया। शिव के द्वारा इस तरह से वरदान देने से देवी पार्वती के मन में हरियाली छाई गई और वह आनंद से झूम उठीं। तब से ही तृतीया तिथि को हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है। दूसरी ओर सावन में सारी सृष्टि हरे रंग का चादर ओढे रहती है इसलिए भी सावन की तृतीया को हरियाली और कज्जली तीज के नाम से पुकारते हैं। 

इस वर्ष यह तीज 26 जुलाई बुधवार को है। इस दिन तृतीया तिथि सुबह 9 बजकर 57 मिनट से रात 8 बजकर 8 मिनट तक है। इसलिए तीज के विधिविधान व पूजन भी इसी समय किए जाएंगे। भविष्यपुराण के अनुसार तृतीय के व्रत और पूजन से सुहागन स्त्रियों का सौभाग्य बढ़ता है और कुंवारी कन्याओं के विवाह का योग प्रबल होता है जिससे कुंवारी कन्याओं को मनोनुकूल वर प्राप्त होता है। 

कुछ लोगों के अनुसार ऐसी भी कथा है कि भगवान शिव ने देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर समस्त नारी जाति को यह वरदान दिया है कि जो भी कुंवारी कन्याएं और सुहागन स्त्रियां तृतीय तिथि को देवी पार्वती के साथ शिव की पूजा करेंगी उनका दाम्पत्य जीवन खुशहाल होगा। 

सावन की इस हरियाली तीज के मौके पर नई नवेली दुल्हन के मायके से नए वस्त्र, सुहाग सामग्री, मेंहदी और मिठाई आने की परंपरा रही है। माना जाता है कि यह मायके की ओर से दुल्हनों के लिए सुहाग का आशीर्वाद होता है। पूर्वजन्म में जब देवी पार्वती का सती रूप में अवतार हुआ था तब शिव से विवाह कर लेने के कारण माता-पिता ने इन्हें त्याग दिया था। पार्वती रूप में जब देवी का जन्म हुआ तो माता-पिता ने अपनी भूल सुधारने के लिए देवी को सुहाग सामग्री भेजा था। इस कारण से हरियाली तीज में इस तरह की परंपरा चली आ रही है। 

हर व्रत की तरह हरियाली तीज के भी कुछ नियम हैं। इस व्रत में मायके से जो सुहाग सामग्री आती है उससे सुहागन ऋंगार करती हैं इसके बाद बालूका से बने शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसका कारण यह है कि देवी पार्वती ने वन में बालूका से ही शिवलिंग बनाकर उनकी तपस्या की थी। इस व्रत में तीन चीजों का त्याग जरूरी माना गया है- पति से छल-कपट, असत्य वचन का त्याग और तीसरा दूसरों की निंदा।

Monday, July 24, 2017

एक बार फिर जान ले गई सेल्फी


दीव समुद्र किनारे पर सेल्फी लेने के दौरान राजस्थान के तीन लोग समुद्र लहरों के चपेट में आए


दमन दीव के नगांव तट के पास एक पहाड़ी पर बैठकर सेल्फी लेते समय, समुद्र की उुंची लहरों की चपेट में आए राजस्थान के तीन व्यक्तियों के , जिनके नाम पृथ्वी राजपूत 25, चंदू सिंह 30 और जीत राजपूत 40 बताये गए है , अरब सागर में डूबने का अंदेशा है। दीव स्थित स्थानीय थाने के एक अधिकारी ने कहा कि एक अन्य व्यक्ति भी लहरों की चपेट में आकर बह गया था लेकिन वह तैर कर तट पर वापस आ गया।


स्थानीय पुलिस अधिकारी ने बताया कि राजस्थान के रहने वाले पांच लोग जिले के केवडी में एक निर्माण परियोजना में काम करते हैं। वे छुट्टी के दिन दीव घूमने आये हुए थे और समुद्र किनारे सेल्फी ले रहे थे और उनमें से एक व्यक्ति अपने मोबाइल से बाकि चार साथियों की वीडियो बना रहा था जो तट के पास एक पहाड़ी पर बैठे थे, जब वे सेल्फी लेने में मशगूल थे तो 25 फुट उुंची समुद्र की लहर उन्हें बहा कर ले गई।


स्थानीय पुलिस के अनुसार एक व्यक्ति जो कि तैरना जनता था वह तैर कर वापस किनारे पे आ गया लेकिन उसके बाकि तीन साथियों का डूबने का पूरा अंदेशा है।उनकी गुमशुदगी का मामला दर्ज कर लिया गया है और उनकी तलाश जारी है।



स्थानीय पुलिस ने एक बार फिर घूमने आने वाले लोगों को आगाह किया है कि मानसून के इस मौसम में जब समुद्र में हाई टाइड (high tide) हो, ऐसे में सभी पर्यटक व स्थानीय निवासी किनारों से दूर रहे।


देखें विडिओ




नाशपाती - है कितना लाभदायक शरीर के लिए

अनेक रोग-विकारों में सहायक नाशपाती एक ऐसा फल है जो पौष्टिक और गुणकारी होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी होता है जोकि दूसरे फलों की अपेक्षा एक सस्ता फल है। विटामिन ‘सी और ‘ए से भरपूर नाशपाती भारत में यूरोप और ईरान से आई है और धीरे-धीरे यहां भी इसकी खेती होने लगी। भारत में नाशपाती की खेती हिमाचल प्रदेश तथा कश्मीर में की जाती हैं। इस फल के स्वास्थ्य लाभ इतने हैं कि आप गिनते-गिरते थक जाएंगे।
नाशपाती में काफी सारे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिससे रक्तचाप, कैंसर, मधुमेह, त्वचा रोग, पेट संबन्धित बीमारियां आदि आराम से ठीक हो सकती हैं।
नाशपाती को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है:
1.    चाइना या साधारण नाशपाती
2.    यूरोपीय नाशपाती
3.    यूरोपीय और चाइना नाशपाती को मिलकर बनाई गई संकर नस्ल की नाशपाती।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज़िलों में चाइना नाशपाती की खेती होती है। यह अन्य किस्म के मुकाबले में कठोर होते हैं और मुरब्बा बनाने एवं डिब्बाबंदी के कार्य में इस्तेमाल किये जाते हैं।
यूरोपीय किस्मों में लैक्सटन्स सुपर्व, विलियम्स तथा कॉन्फ्रसें उत्तम किस्में है। इनके फल कोमल, रसदार और मीठे होते हैं। इनकी कृषि कुमाऊँ तथा चकराता में सफलतापूर्वक की जा सकती है। संकर किस्मों को नाख भी कहते हैं। यूरोपीय किस्मों की अपेक्षा ये अधिक सहिष्णु होती हैं। इनमें लेकांट, स्मिथ तथा किफर बहुत ही प्रचलित किस्में हैं।
  

नाशपाती के फायदे
नाशपाती के सेवन से केवल वात, पित्त और कफ के दोष दूर होते हैं बल्कि इससे मस्तिष्क को भी शक्ति मिलती है। यह एक ऐसा फल है जो बच्चों की स्मरण शक्ति भी बढ़ाती और शारीरिक विकास भी होता है। भोजन को पचाने में नाशपाती एक सहायक के रूप में काम करती है साथ इससे लिवर को भी शक्ति मिलती है।
नाशपाती फाइबर का एक अच्छा स्त्रोत हैं जो पाचन तंत्र को मजबूत बनाता हैं। इसमें मौजूद पेक्टिन कब्ज और दस्त को ठीक कर सकता है। इसके जूस को रोजाना पियें।

एनीमिया से बचाए नाशपाती आयरन का एक अच्छा स्त्रोत हैं जो हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाता हैं और एनीमिया से ग्रस्त रोगियों को सुरक्षा प्रदान करता हैं।
नाशपाती में पक्टिन होता है जो कि कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है। इसका रस सभी को पीना चाहिये।
नाशपाती में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन सी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने और जुकाम, फ्लू और संक्रमण से लड़ने में मदद करता हैं।

इसमें कॉपर और विटामिन सी होता है, जिसे रोजाना खाने से कैंसर पैदा करने वाले फ्री रैडिकल् क्षतिग्रस् हो जाते हैं।

नाशपाती का जूस पीने से तुरंत ही शरीर में ऊर्जा बढ़ती है। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि इसमें ग्लूकोज होता है।
नाशपाती में अधिक मात्रा में बोरोन होता है। बोरोन हड्डियों में कैल्शियम को बनाए रखने में मदद करता है। इसलिए नाशपाती का सेवन करने से आस्टियोपोरोसिस होने का खतरा नहीं होता।
नाशपाती में मौजूद पोटैशियम और ग्लूटाथिओन होते हैं जो कि एक प्रकार के एंटीऑक्सीडेंट हैं और रक्तचाप को कम करने तथा दिल के दौरे और स्ट्रोक के खतरे को कम करने में मदद करते हैं।
प्रचुर मात्रा में फाइबर से युक्त नाशपाती मधुमेह रोगियों के लिये अच्छा होता है। इसकी शर्करा को खून धीरे-धीरे अवशोषित कर लेता है और फाइबर इसके स्तर को नियंत्रित रखता है।
एक अध्ययन के मुताबिक नाशपाती फाइबर और विटामिन सी का एक बहुत अच्छा स्रोत है। इससे आप अपने शरीर में कैलोरी की मात्रा को कम कर सकते हैं। माना जाता है कि एक मीडियम नाशपाती 24 फीसदी फाइबर देता है। यह एक ऐसा फल है जो केवल सोडियम फ्री है बल्कि कोलेस्ट्रॉल से मुक्त और वसा रहित भी है। सेहत विशेषज्ञों का मानना है कि इस अकेले फल से पुराने रोगों को दूर कर सकते हैं। नाशपाती फल एक ऐसा घरेलू उपाय है जिसके जरिए आप हैंगओवर की समस्या को भी दूर कर सकते हैं।


नाशपाती के औषधीय गुण 
1. अगर भूख नहीं लगती है तो नाशपाती को छीलकर, उसके छोटे-छोटे टुकड़े करके उन्हें हल्का-सा गर्म करके, उन पर भुना हुआ जीरा और काली मिर्च का चूर्ण, काला नमक मिलाकर सेवन करने से बहुत फायदा होता है। भूख भी तेजी से लगती है। पाचन क्रिया भी तीव्र होती है।
2. पकी हुई नाशपाती को कद्दूकस पर कसकर उसमें पोदीने की पिसी हुई पत्तियों को मिलाकर लेप बना लें। चेहरे को हल्के गर्म पानी से साफ करके उंगलियों से चेहरे पर लगाएं। 25 मिनट बाद टिश्यू पेपर से चेहरा साफ करके पहले हल्के गर्म और फिर ठंडे पानी से साफ करें। ऐसा करने से चेहरे की त्वचा में अद्भुत निखार आता है।
3. एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन सी होने की वजह से नाशपानी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है। साथ ही कोलेस्ट्रॉहल को कम करने में नाशपाती एक अहम भूमिका निभाता है।
4. बच्चों को रोजाना नाशपाती खाने या उसका जूस पीने से बहुत लाभ होता है। नाशपाती से दिमाग को शक्ति मिलने से स्मरण शक्ति प्रबल होती है।
5. प्रतिदिन नाशपाती के सेवन से वीर्य में बढ़ोत्तरी होती है। यह हड्डियों के लिए भी फायदेमंद है।
6. दस्त और पेचिस की समस्या होने पर नाशपाती खाने या उसका रस पीने से बहुत लाभ होता है।
7. गर्मी होने या अन्य किसी कारण से पेशाब अवरोध होने पर 150 से 200 ग्राम नाशपाती का रस सुबह-शाम पीने से पेशाब का निष्कासन सरलता से होने लगता है।
8. कब्ज होने की स्थिति में स्त्री-पुरूषों को प्रतिदिन नाशपाती खाना चाहिए या उसका रस पीना चाहिए। कब्ज की समस्या शीघ्र नष्ट होती है।
9. गर्भावस्था में योनि से किसी तरह का स्राव होने लगे तो नाशपाती का सुबह-शाम सेवन करने से बहुत फायदा होता है
10. नाशपाती के रस में काला जीरा और काला नमक डालकर पीने से अधिक प्यास लगने की समस्या दूर होती है।
11. आयरन का स्रोत होने की वजह से नाशपाती हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाता हैं और एनीमिया से ग्रस्त रोगियों को सुरक्षा प्रदान करता हैं।
नाशपाती खरीदते समय ध्यान रखें 
नाशपाती खरीदते समय ये ध्यान रखना चाहिए कि यह ज्यादा मुलायम हो और ही सख्त। इससे मीठी खुशबू आनी चाहिए। अगर इसमें थोड़े बहुत भूरे धब्बे हैं तो कोई बात नहीं लेकिन अगर ये बहुत ज्यादा पका हो तो लें। नाशपाती को खरीदने के दो-तीन दिन तक खा लेना चाहिए।