Thursday, August 15, 2024

MANIMAHESH YATRA


सावन का महीना चल रहा था। उस वीकेंड पे लगातार तीन छुट्टी पड़ रही थी , तब मैंने और मेरे दोस्त अजय ने कहीं घूमने का प्रोग्राम बनाया। लेकिन जाना कहाँ है ये decide नहीं किया था। तब हमने तीन दिन का समय जानकार वैष्णो देवी जाने का प्रोग्राम बनाया, तब शाम का समय था , दोनों ने अपने अपने बैग पैक किये और बाहर गली में आकर खड़े हो गए। मैंने बरमूडा और ऑरेंज कलर की टीशर्ट पहन रखी थी। उसने भी ऑरेंज कलर की टीशर्ट और ब्लू कलर की ट्रैक पैंट पहनी हुई थी। 

अजय की जेब में उस समय तीन हजार के करीब रुपये पड़े थे और मेरी जेब में उस समय सिर्फ दो सौ रूपए ही थे। तब उसने कहा कि मैं कुछ पैसे और ले चलूँ, तबमैंने कहा कि चिंता कि कोई बात नहीं है ! मेरे पास डेबिट और क्रेडिट कार्ड है, रास्ते में किसी एटीएम से पैसे निकाल लेंगे। 

अभी तक ये फैसला नहीं हुआ था कि जाना कहाँ है। सावन का महीना चल रहा था, जैसा कि मैंने पहले ही बताया , कंधे पर अपने अपने बैग लटकाये हम जैसे ही बाहर निकले, कुछ दोस्त मिल गए और हमारे ऑरेंज कपडे देख कर उन्होंने समझा कि हम भी सावन के महीने में कावड़ लेने के लिए हरिद्वार जा रहे है और हम को हर हर महादेव और जय भोले के जयघोष से हमारा हौसला बढ़ने लगे ,

गली के बाहर से हमने एक कश्मीरी गेट बस अड्डे तक का एक ऑटो किया और पहुँच गए बस अड्डे। वहां पहुंच कर हमने ऑटो वाले को किराया दिया और चल पड़े वैष्णो देवी, कटरा की बस पकड़ने के लिए।  

उस दिन कश्मीरी गेट बस अड्डे का नजारा कुछ और ही था, आम दिनों की अपेक्षा उस दिन कुछ ज्यादा ही भीड़ थी, वजह मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ कि उस सप्ताह लगातार तीन छुट्टी पड़ रही थी, जिसकी वजह से, ऐसा लग रहा था जैसे कि सारे दिल्लीवासी छुट्टियां बिताने के लिए अलग अलग डेस्टिनेशन पर जा रहे है। लगभह 15-20 मिनट इधर उधर भटकने के बाद हम समझ गए कि आज कहीं का भी टिकट मिलना बहुत मुश्किल है। फिर भी हम दोनों अलग अलग कोशिश करते रहे कि कहीं से भी दो टिकट का इंतेज़ाम हो जाए, क्योंकि हम दोनों ही घर बोल कर आये थे कि हम वैष्णो देवी दर्शन के लिए जा रहे है, लेकिन अब कहीं से भी टिकट का इंतेज़ाम नहीं हो पा रहा था और अब हमको भी लगने लगा था कि अब हमको भी यही से वापस, अपने घर जाना पड़ेगा। हम दोनों ही मायूस हो चुके थे क्योंकि हम दोनों सोच रहे थे कि अब अगर वापस घर पहुंचे तो हमारा बहुत मजाक उड़ाया जाएगा। इसलिए हम ब्लैक में भी टिकट लेकर जाने को तैयार थे, लेकिन सभी टिकट पहले ही बुक हो चुके थे, इसी तरह वहां हमको एक घंटे से ऊपर का समय हो गया था। समय बड़ी तेज़ी से गुजर रहा था और हमारे पास टिकट का कोई भी जुगाड़ नहीं था। 

आखिर हार कर हम दोनों, अपना लटका हुआ मुंह लेकर बस अड्डे से बाहर निकल आये। घर जाने को हमारे कदम नहीं उठ रहे थे। हम जैसे ही बस अड्डे से निकल कर बाहर रोड पर आये, तभी एक लड़का, जो हुलिए से किसी बस का क्लीनर लग रहा था, हमारे पास आया और पूछने लगा कि आपको कहाँ जाना है ? हमारे ये बताने पर कि हम वैष्णो देवी दर्शन के लिए जाना चाहते थे, लेकिन सभी बस फुल चल रही है इसलिए वापस अपने घर जा रहे है। 

तब उसने हमको बताया कि बस अड्डे के बाहर से कुछ प्राइवेट बस चलती है जो अलग अलग जगह जाती है, आपको वहां से वैष्णो देवी की बस मिल जायेगी। तब   हमने उसको कहा कि हम तैयार है, तब उसने हमको कुछ देर वहीँ इंतज़ार करने को कहा और कहा कि वह कुछ और सवारियों का इंतेज़ाम कर लेता है फिर सबको साथ ही उस जगह ले चलेगा जहाँ से बस मिलती है। 

हम वहां खड़े होकर इंतज़ार करने लगे, थोड़ी ही देर में वो 4-5 सवारियों को लेकर आ गया और फिर हम सबको लेकर बस अड्डे के बाहर बने एक किओस्क पे ले गया जहाँ एक व्यक्ति पर्चियां काट कर दे रहा था। वहां जब हम टिकट लेने पहुंचे तो काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने बताया कि यहाँ से अब वैष्णो देवी या जम्मू के लिए कोई बस नहीं है, अभी कुछ ही देर में एक बस पठानकोट जाने वाली है, अगर आप कहो तो मैं आपको पठानकोट तक की टिकट दे देता हूँ, वहां से आप को जम्मू के लिए बहुत साड़ी बस मिल जायेगी। हम सोच ही रहे थे कि तभी हमारे साथ खड़े एक व्यक्ति ने कहा कि वह अक्सर जाता रहता है, आप लोग पठानकोट तक की टिकट ले लो,वहां से बहुत साड़ी बस जम्मू और कटरा के लिए चलती है।

तब हमने पठानकोट ही जाने का फैसला किया और वहां तक की दो टिकट ले ली। कुछ देर बाद, जो लड़का हमको यहाँ लाया था, वह हमें और बाकी की सवारियों को लेकर सड़क के पार कुछ दूर खड़ी अपनी बस के पास ले गया और टिकट के हिसाब से सबको सीट देने लगा। बस में सीट मिलने के बाद, हमारे चेहरे पर सुकून आया कि आखिर हमारी यात्रा शुरू हो ही गई, वर्ना तो हम वापस घर जाने की सोच रहे थे। रात साढ़े ग्यारह बजे हमारी बस दिल्ली से निकली, और कुछ ही देर में बातें करते करते हम सो गए। सुबह 4 बजे के करीब हमारी बस जालंधर के पास किसी ढाबे पे चाय नाश्ते के लिए कुछ देर के लिए रुकी।  तब हमने ढाबे पे चाय पी और फ्रेश हुए। लगभग बीस मिनट बाद हमारी बस वहां से आगे अपनी मंजिल की तरफ चल पड़ी और हम बस में अपनी सीट पर आकर ढेर हो गए।



सुबह जब हमारी आँख खुली तो 7 बज चुके थे, खिड़की से बाहर खेत ही खेत दिखाई दे रहे थे, शायद हमारी बस, उस समय किसी highway के पास के गाँव के बीच से जा रही थी। बस में आसपास नजर दौड़ाई और बस में सवार अन्य सवारियों पर नजर दौड़ाई तो जाना कि बस पूरी भरी हुई थी। 

समय व्यतीत करने के लिए, हमने अपने साथ वाली सीट पर बैठे हुए सज्जन से बात करना शुरू कर दिया। हमने अपने बारे में उनको बताया कि हम दिल्ली में Paharganj में रहते हैं और वैष्णो देवी जा रहे है। उस आदमी ने अपना नाम टोनी बताया, लहजे से वो पंजाबी लग रहा था और दिल्ली के ही तिलक नगर का रहने वाला था। टोनी ने हमको बताया कि वो मणि महेश के दर्शन करने जा रहा है। तब पहली बार हमने मणि महेश का नाम सुना था। 

टोनी ने हमको मणि महेश के बारे में बताया कि वहां भगवान शिव का स्थान है जो कि जन्माष्टमी के दिन से लेकर राधा अष्टमी तक यहां मेला लगता है, जिसमें वो जा रहा है, इस मेले में हर वर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते है। उसने बताया कि पठानकोट पहुँचने के बाद, वहां से वो चम्बा वाली बस पकड़ेगा फिर चम्बा पहुंचकर वहां से भरमौर के लिए बस लेगा, जो कि लगभग 65 किलोमीटर का सफर है। फिर भरमौर से हड़सर के लिए छोटी बस या टैक्सी लेगा, ये सफर लगभग 13 किलोमीटर लम्बा है। हड़सर से मणिमहेश की यात्रा शुरू होती है जिसमें पहले पड़ाव धनछो तक का 6 किलोमीटर का पैदल सफर है उसके बाद धनछो से गौरीकुंड दूसरा पड़ाव पड़ता है जो कि धनछो से 6 किलोमीटर की दूरी पर है फिर वहां से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर मणिमहेश मंदिर है। टोनी की बातें सुन कर हमको भी लगने लगा कि हमको भी एक बार वहां चलना चाहिए। खैर, इसी तरह बातें करते करते पता ही नहीं चला कि कब हम पठानकोट के बस अड्डे पर पहुँच गए। 

..... आगे कहानी अभी और भी है और मजेदार भी, तो बने रहिए मेरे साथ...


Pathankot बस स्टैंड 

Pathankot से चंबा 

चंबा से bharmor

Bharmor से पैदल यात्रा 

मणि महेश दर्शन 

वापसी 


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